आखिर क्यों अविवाहिताएं शिवलिंग की पूजा नहीं कर सकती?

आखिर क्यों अविवाहिताएं शिवलिंग की पूजा नहीं कर सकती?
Lord Shiva

महादेव को देवों के देव माना जाता है। और सबसे श्रेष्ठ देव माना जाता है। लेकिन ऐसे बहुत से लोग है जो कि नहीं जानते है कि शिवलिंग की पूजा करना व उसे छूना कुंवारी नारियों के लिए निषेध है।  लेकिन इसके पीछे का कारण बहुत से कम लोग जानते है।

  • अविवाहित स्त्री को शिवलिंग के करीब जाने की आज्ञा नहीं है। साथ ही इसके चारों ओर भी अविवाहित स्त्री को नहीं घूमना चाहिए। यह इसलिए क्योंकि भगवान शिव बेहद गंभीर तपस्या में व्यस्त रहते हैं।
  • जब भगवान शिव की पूजा की जाती है तो विधि-विधान का बहुत खयाल रखना पड़ता है। देवता व अप्सराएं भी भगवान शिव की पूजा करते समय बेहद सावधानी से उनकी पूजा करती हैं।
  • यह इसलिए कि कहीं देवों के देव महादेव की तंद्रा भंग न हो जाए। जब शिव की तंद्रा भंग होती है तो वे क्रोधित हो जाते हैं। इसी कारण से महिलाओं को शिव पूजा न करने के लिए कहा गया है।
  • लेकिन क्या इसका मतलब यह हुआ कि अविवाहित स्त्री शिव की पूजा कर ही नहीं सकती। अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप बिल्कुल गलत हैं। बल्कि अविवाहित स्त्री भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा एक साथ कर सकती हैं।
  • कई महिलाएं लगातार 16 सोमवारों को भगवान शिव का सोमवार व्रत रखती हैं। इस व्रत को रखने से कुंवारी महिलाओं को अच्छा वर प्राप्त होता है वहीं विवाहित महिलाओं के पति नेक मार्ग पर चलते हैं।
  • सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है। तीनों लोकों में भगवान शिव को एक आदर्श पति माना जाता है। इसलिए अविवाहित स्त्री सोमवार का व्रत रखती हैं और भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं उन्हें शिव के समान ही आदर्श पति मिले।
  • वृषभ शिव का वाहन है। वह हमेशा शिव के साथ है। वृषभ का अर्थ धर्म है। मनुस्मृति के अनुसार 'वृषो हि भगवान धर्म:'। वेद ने धर्म को चार पैरों वाला प्राणी कहा है। उसके चार पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। महादेव इस चार पैर वाले वृषभ की सवारी करते हैं यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनके अधीन हैं।
  • शिवरा‍त्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को आती है। शिवजी इस चतुर्दशी के स्वामी हैं। इस दिन चंद्रमा सूर्य के अधिक निकट होता है। समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा (शिव) से आत्मसाधना करने की रात शिवरात्रि है।
  • शिव पूजा के संबंध में भारत के अलग-अलग राज्यों में मान्यताएं भिन्न भिन्न हैं। दक्षिण भारत में मंदिर के भीतर पूजा सिर्फ मंदिर का पुजारी ही कर सकता है। दूसरे लोगों को यह पूजा करने की इजाजत नहीं है।

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