कब है पौष माह की पूर्णिमा? जानिए इसका महत्व और पूजन विधि

कब है पौष माह की पूर्णिमा? जानिए इसका महत्व और पूजन विधि
When is the poornima of Poush month

जो पूर्णिमा पौष माह के शुक्ल पक्ष को आती है उसे पौष पूर्णिमा कहते है। ऐसा माना जाता है कि पौष पूर्णिमा के दिन ही भगवती दुर्गा के शांकंभरी स्वरूप का अवरण हुआ था। इसी वजह से इसे शाकम्भरी पूर्णिमा भी कहते है। इस साल पौष पूर्णिमा 28 जनवरी 2021 को है।  

ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन स्नान दान और सूर्य एवं चंद्र देव को जल देने से पुण्य का लाभ होता है। पौष पूर्णिमा के दिन यदि कोई व्यक्ति स्नान दान करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा के दिन से ही स्नान दान और सूर्य एवं चंद्र देव को जल देने से पुण्य लाभ मिलता है। पौष पूर्णिमा पर स्नान दान से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष माह की पूर्णिमा से ही कल्पवास भी हो जाता है। कल्पवासी पौष पूर्णिमा के दो तीन पहले से संगम किनारे आजाते है और तपस्या शुरू करते है। माघ के मेले का दूसरा स्नान पौष पूर्णिमा पर होता है। कल्पवासी माघ मेले के सभी प्रमुख स्नानों पर स्नान और दान करते है।

माघी पूर्णिमा के दिन  ही कल्पवास का समापन होता है। कल्पवास में कल्पवासी विधि विधान से जीवन मृत्यु के बंधनों से मुक्ति की कामना लेकर आते है।

जानिए पूर्णिमा तिथी एवं मुहूर्त:

  • पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 28 जनवरी 2021, गुरूवार को 01 बजकर 18 मिनट से
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त- 29 जनवरी 2021 शुक्रवार की रात 12 बजकर 47 मिनट तक।

जानिए पौष पूर्णिमा व्रत महत्व

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि पौष पूर्णिमा के दिन जो व्यक्ति स्नान, दान और तप व्रत करता है उसे पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगर किसी व्यक्ति को अपने दुःख दूर करने है तो पौष पूर्णिमा के दिन सूर्य देव और चंद्रदेव  की आराधना से दूर होने की मान्यता है। पूर्णिमा तिथि चन्द्रमा को समर्पित की जाती है। सुबह के समय सूर्योदय को अर्ध्य देना शुभ फलकारी माना जाता है। जबकि चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा की पूजा कर व्रत का पारण करना चाहिए।

जानिए पौष पूर्णिमा की व्रत विधि:

  • प्रातः काल स्नान आदि करे उसके बाद व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करे।
  • विष्णु जी को भोग आदि लगाकर आरती करे।
  • मंत्रोच्चारण करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
  • पुरे दिन श्रीहरि के नाम का ध्यान लगाए।
  • रात को चन्द्रमा निकलने के बाद में धूप दीप से पूजा करे और चन्द्रमा को अर्ध्य दे।

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