जानिये 400 साल तक बर्फ में दबे रहे केदारनाथ मंदिर के रहस्य

जानिये 400 साल तक बर्फ में दबे रहे केदारनाथ मंदिर के रहस्य
Kedarnath Temple

भारत के राज्य उत्तराखंड में गिरिराज हिमालय की केदार नाम की चोटी पर स्थित देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बना हुआ है। केदारनाथ मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है और इस मंदिर के संबंध में बहुत सी कथाएं जुडी हुई है। आज के लेख में जानिये कब और किस वजह से केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा और क्या है इस मंदिर से जुड़े हुए रहस्य-

पहला रहस्य:

केदारनाथ मंदिर का पहला रहस्य है कि केदारनाथ धाम में एक तरफ है करीबन 22 हजार फुट ऊँचा केदार, वही उसकी दूसरी ओर 21 हजार और 600 फुट ऊँचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊँचा भरतकुंड का पहाड़। यहाँ न सिर्फ तीन पहाड़ है बल्कि इसी जगह पांच नदियों का संगम भी होता है, यहाँ पर मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी।  इन सभी नदियों के संगम में अलकनंदा की सहायक नदी मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारनाथ धाम। केदारनाथ में सर्दी के मौसम में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।

दूसरा रहस्य:

केदारनाथ मंदिर का निर्माण कटवां पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर में कटवां पत्थरों के भूरे रंग के विशाल  एवं मजबूत शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। यहाँ पर 6 फुट ऊँचे चबूतरे पर खड़े 85 फुट ऊँचे, 187 फुट लंबे और 80 फुट चौड़े मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी है। यह सबसे आश्चर्यजनक बात है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर एवं तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। और सबसे ख़ास बात यह है कि कैसे वह विशालकाय छत खंभो पर रखी गई होगी? इस मंदिर में पत्थरों को एक दूसरे से  जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

तीसरा रहस्य :

ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर मौजूदा  मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने  बनवाया था, लेकिन कहा जाता है कि वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। उस समय इस मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदिशंकराचार्य ने करवाया था। इस मंदिर के पीछे ही  उनकी समाधि है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले तो 10वीं सदी के मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर उसके बाद में 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।  

चौथा रहस्य:

जब दीपावली का महापर्व होता है उसके दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते है। इसके बाद में 6 माह तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। मंदिर के पुरोहित ससम्मान मंदिर के पट बंद करके भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक के लिए पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते है। इसके बाद में 6 माह के बाद मई के माह में केदारनाथ के कपाट खुलते है। उस समय उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। कहा जाता है इन 6 महीनों तक मंदिर के आस पास में कोई नहीं रहता है। लेकिन आश्चर्य और रहस्य की बात यह है कि इन 6 महीनों तक मंदिर का दीपक लगातार जलता रहता है और वहा निरंतर पूजा  भी होती रहती है। जब कपाट खुलते है तो आश्चर्य का विषय यह है कि मंदिर के अंदर वैसी की वैसी सफाई मिलती है जैसे कपाट बंद करने से पहले होती है। 

पांचवा रहस्य:

जैसा कि हम सब जानते है कि 16 जून 2013 ऐसा दिन है जिस दिन प्रकृति ने अपना कहर बरपाया था। उस जलप्रलय के कारण कई बहुत ही बड़ी बड़ी और मजबूत इमारतें ताश के पत्तों की जैसे पानी में ढहकर बह गई थी, लेकिन उस समय भी केदारनाथ मंदिर को कुछ नहीं हुआ था। सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात  तब थी जब पीछे पहाड़ी से पानी के बहाव में लुढ़कती हुई विशालकाय चट्टान आई और अचानक से वह मंदिर के पीछे रुक गई थी। जब वह चट्टान रुकी तो बाढ़ का जल दो भागों में विभक्त हो गया और मंदिर कई गुना ज्यादा सुरक्षित हो गया था। इस प्रलय में करीबन दस हजार लोगों की मौत हो गई थी।

छठा रहस्य:

पौराणिकों की भविष्यवाणी के अनुसार इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएगें। ऐसा माना जाता है कि जिस  दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएगें, उसी दिन बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरीके से बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएगे। पुराणों के हिसाब से ऐसा माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम लुप्त हो जाएगें और कई वर्षों के बाद भविष्य में "भविष्यबद्री" नामक एक नया तीर्थ का उद्गम होगा।

जानिये कैसे 400 सालों तक के लिए कैसे बर्फ से दबा रहा केदारनाथ का मंदिर और जब बाहर निकला तो पूर्वतः सुरक्षित था। एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा माना जाता है कि 13वीं से लेकर 17वीं  शताब्दी तक यानी कि 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमे हिमालय का एक बहुत बड़ा सा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था। उसमे यह मंदिर क्षेत्र भी था। अगर हम वैज्ञानिकों की माने तो मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी  इसके निशान देखे जाते है।

केदारनाथ का यह इलाका चोराबरी ग्लेशियर का ही एक हिस्सा है। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि ग्लैशियरों के लगातार पिघलते रहने और चट्टानों के खिसकते रहने से आगे भी इस तरह का जलप्रलय या फिर अन्य प्राकृतिक आपदाए जारी रहेगी।