वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है ? जानिए पूजा विधि और मुहूर्त

वट सावित्री व्रत क्यों  किया जाता है ? जानिए पूजा विधि और मुहूर्त
Vat Savitri

वट सावित्री पर्व 22 मई को मनाया जाएगा। वट सावित्री का त्योहार ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। हिंदू धर्म में वट सावित्री वृक्ष का अलग ही महत्व माना जाता है। वट वृक्ष यानी कि बरगद के पेड़ की पुरे भारत में पूजा की जाती है। वट वृक्ष की पूजा करने वाली महिलाओं का सुहाग अजर-अमर रहता है और उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है।

वट वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना जाता है। यह इकलौता ऐसा वृक्ष है, जिसे तीनों देवों का रूप माना गया है। इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी भोलेनाथ का वास होता है। वट वृक्ष की पूजा करने से तीनों देवता प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। वट वृक्ष की शाखाओं और लटों को सावित्री का रूप माना जाता है। देवी सावित्री ने कठिन तपस्या से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं। आज के लेख में हम आपको बताएगे वट सावित्री के व्रत के दिन क्या क्या करे।

  • सुबह स्नान कर साफ वस्त्र और आभूषण पहनें।
  • यह व्रत 3 दिन पहले से शुरू होता है, इसलिए दिन भर व्रत रखकर औरतें शाम को भोजन ग्रहण करती हैं।
  • वट पूर्णिमा व्रत के दिन वट वृक्ष के नीचे अच्छी तरह साफ सफाई कर लें।
  • वट वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री की मूर्तियां स्थापित करें और लाल वस्त्र चढ़ाएं।
  • बांस की टोकरी में 7 तरह के अनाज रखें और कपड़े के दो टुकड़े से उसे ढंक दें।
  • एक और बांस की टोकरी लें और उसमें धूप, दीप कुमकुम, अक्षत, मौली आदि रखें।
  • वट वृक्ष और देवी सावित्री और सत्यवान की एक साथ पूजा करते हैं।
  • इसके बाद बांस के बने पंखे से सत्यवान और सावित्री को हवा करते हैं और वट वृक्ष के एक पत्ते को अपने बाल में लगाकर रखा जाता है।
  • इसके बाद प्रार्थना करते हुए लाल मौली या सूत के धागे को लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते हैं और घूमकर वट वृक्ष को मौली या सूत के धागे से बांधते हैं। ऐसा 7 बार करते हैं।
  • यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद कथा पढ़ें या सुनें।
  • पंडित जी को दक्षिणा देते हैं।
  • घर के बड़ों के पैर छूकर आर्शीवाद लें और मिठाई खाकर अपना व्रत खोलें।
  • अगर पंडित जी को दक्षिणा नहीं दें पाएं तो आप किसी जरूरतमंद को भी दान दे सकते हैं।
  • इस बार पूजन का शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त / सूर्योदय के पूर्व के प्रहर से शुरू होकर रात्रि 11 बजकर 8 मिनट तक रहेगा।

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