शास्त्रों के अनुसार यह मंत्र कर सकते है आपके चक्रों को जागृत

शास्त्रों के अनुसार यह मंत्र कर सकते है आपके चक्रों को जागृत

1)    ध्यान की अवस्था –
इस बात से आप सभी वाकिफ होंगे की हमारे शरीर का हर एक चक्र स्वयं की अलग- अलग और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| हर चक्र की अपनी खुद की एक भूमिका होती है और हर चक्र अपने स्तर पर अपने आप में ख़ास है| हर चक्र की अपनी खुद की एक भूमिका होती है और हर चक्र अपने स्तर पर अपने आप में ख़ास है जिस तरह से हम अपने चक्रो को जागृत करने लगते है वैसे- वैसे हम अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन पर भी विजय पाने लगते है| और अगर हम ध्यान की अवस्था मे अलग अलग व संबंधित मंत्रों का जाप करे तो यह काफी सेहतमंद और फायदेमंद साबित होते है|

2)    मेडिटेशन –
चक्रों का एकाग्र होना बेहद लाभदायक माना गाया है मैडिटेशन या ध्यान के दौरान। तो आइये जानते है मुख्य 7 चक्र और उनसे संबंधित मंत्रों और जापो के बारे मे|

3)    मूलाधार चक्र –
“ॐ लं”... यह मंत्र मूलाधार चक्र के लिए है जो की रीढ़ की हड्डी के सबसे निचे हिस्से की तरफ होता है| इस मंत्र का जाप करने से हमारे शरीर की सभी अशुद्धियाँ और शरीर में मौजूद असुरक्षा, संशय और असुरक्षा का भाव समाप्त हो जाता है| व् जीवन ख़ुशी और समृद्धि स परिपूर्ण होता है| 

4)    स्वाधिष्ठान चक्र  -
“ॐ वं”… यह मंत्र स्वाधिष्ठान चक्र के लिए है जो की जननांग के ठीक पीछे व् विपरीत होता है, इस मंत्र का जाप करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है व् मदद करता है आपको आपके स्वयं को खुल कर बया करने में व बता पाने मे|

5)    मणिपुर चक्र  -
“ॐ रं” …. यह मणिपुर चक्र होता है जो की ठीक नाभि के पीछे रीढ़ की हड्डी में होता है| इस मंत्र के जाप से आप नकारात्मक भावों से मुक्ति पाने व् खुद और स्वयं को  नियंत्रित रखने में सफल होते है|

6)    अनाहत चक्र –
“ॐ यं” …. यह अनाहत चक्र होता है जो की     हृदय के ठीक बीच मकी तरह रीढ़ की हड्डी में होता है| यह मंत्र आप जब कर सकते है की जब आपको लगे की कोई भी आपसे प्रेम नहीं करता व् आपकी अहमियत नहीं समझते तो यह मंत्र आपके लिए काफी फायदेमंद साबित होगा|

7)    विशुद्धि चक्र –
“ॐ हं”…… यह चक्र सभी चक्रो से जुड़ा हुआ है, व् अगर आप चिड़चिड़ा महसूस करते है तो इस मंत्र का जाप कर परेशानी से मुक्ति पा सकते है|

8)    आज्ञा चक्र –
“ॐ उं”…… यह आज्ञा चक्र जो की आपकी भौहों के बीच मौजूद होता है जिसे तीसरे नेत्र से भी जोड़ा गया है| इस मंत्र के जाप से आपकी आत्मा मे विवेक उत्पन्न होता है व् जीवन मे चल रही दुविधा को भी दूर करने में मदद करता है|

9)    सहस्रार चक्र –
यह सहस्रार चक्र जो की मस्तिष्क के ऊपरी हिस्से पर होता है| यह चक्र मुक्ति का मार्गदर्शन करता है व इसे तंत्र विद्या में काशी भी कहते है| इसके लिए कोई भी मंत्र निश्चित नहीं है इसे प्रयोग के लिए अपने गुरु का ध्यान करे|