रक्षाबंधन 2020: राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और रक्षाबंधन से जुडी रोचक जानकारी

रक्षाबंधन 2020: राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और रक्षाबंधन से जुडी रोचक जानकारी
Raksha Bandhan 2020

रक्षाबंधन का पर्व जिसे कई जगह राखी के नाम से भी जाना जाता है। रक्षाबंधन के दिन जब एक धागा भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। रक्षा बंधन के त्योहार का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। रक्षा बंधन को देव युग, महाभारत काल और सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। श्रावण मास की पूर्णिमा 3 अगस्त 2020 को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। रक्षाबंधन के दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र के रूप में रंगबिरंगी राखियां बांधेंगी। जानिए रक्षाबंधन का सबसे अच्छा मुहूर्त:

  • राखी बांधने का मुहूर्त: 09:27:30 से 21:11:21 तक
  • अवधि: 11 घंटे 43 मिनट
  • रक्षाबंधन अपराह्न मुहूर्त: 13:45:16 से 16:23:16 तक
  • रक्षाबंधन प्रदोष मुहूर्त: 19:01:15 से 21:11:21 तक

शुभ समय-

  • 6:00 से 7:30 तक,

  • 9:00 से 10:30 तक,
  • 3:31 से 6:41 तक

राहुकाल- प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक (राहुकाल में राखी न बांधें)

जानिए रक्षाबंधन से जुडी रोचक जानकारियां:

  • रक्षाबंधन को रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है और वैदिक काल से यह चला आ रहा है। जब व्यक्ति को यज्ञ, युद्ध, आखेट, नए संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलाई पर नाड़ा या सूत का धागा जिसे 'मौली' कहते हैं- बांधा जाता था।

  • स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बली से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताललोक का राजा बना दिया तब राजा बली ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।
  • एक बार भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई तथा खून की धार बह निकली। यह सब द्रौपदी से नहीं देखा गया और उसने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया फलस्वरूप खून बहना बंद हो गया। कुछ समय पश्चात जब दुःशासन ने द्रौपदी की चीरहरण किया तब श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया। यह प्रसंग भी रक्षा बंधन के महत्व को प्रतिपादित करता है।

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