जानिये कैसे बना एक मूषक गणेश जी का वाहन?

जानिये कैसे बना एक मूषक गणेश जी का वाहन?

क्या आप जानते है कि गणों के स्वामी प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश ने एक छोटे से मूषक को ही अपना वाहन क्यों चुना जबकि वह उनके भारी भरकम शरीर से बिलकुल विपरीत है।

आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि भगवान गणेश ने क्यों एक मूषक को अपना वाहन चुना और कौन था वह।

गणेश जी को बुद्धि, समृद्धि, विद्या और भाग्य का देवता माना जाता है। तर्क-वितर्क करना, एक-एक बात या समस्या की तह में जाना,उसकी मीमांसा करना और उसके निष्कर्ष तक पहुंचना यह सब उनका शौक है। ठीक गजानन की तरह  मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नही हैं। वह भी हर वस्तु को काट-छांट कर उसके प्रत्येक अंग का विश्लेषण करते है यही नहीं वह बहुत ही फुर्तीले होते है और हमेशा जागरूक रहने का सन्देश भी देते है।

मगर क्या सिर्फ यही कारण है कि गणेश जी ने एक चूहे को अपना वाहन बनाया। इसके पीछे कई प्राचीन कथाएं प्रचलित है। उनमें से एक रोचक कथा कुछ इस प्रकार है-

एक बार देवराज इन्द्र अपनी सभा में सभी देव गणों के साथ किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे। उस सभा में गन्धर्व और अप्सराएं भी मौजूद थी। सारे देवगन इंद् की बातों को बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे एवं अपना अपना मत भी बता रहे थे लेकिन सभा में एक क्रौंच नाम का गन्धर्व था जो देवराज की बातें न सुनकर अप्सराओं के साथ हंसी ठिठोली कर रहा था।

कुछ समय तक देवराज इंद्र ने उसकी हरकतों को नज़रंदाज़ किया और उसे इशारे में समझाया। किन्तु क्रौंच पर इसका कुछ भी असर नहीं हुआ क्योंकि उस समय वह उन्माद में डूबा हुआ था। उसकी इस हरकत से देवराज क्रोधित हो उठे और उसे श्राप दे दिया की वह एक मूषक बन जाए।

देवराज के श्राप से वह तुरंत ही गन्धर्व से मूषक बन गया और पूरे इंद्र लोग में इधर उधर भागने लगा। उसके उत्पात से परेशान होकर इंद्र ने उसे देवलोक के बाहर फ़ेंक देने का आदेश दिया जिसके पश्चात द्वारपालों ने क्रौंच को स्वर्ग लोक के बहार फ़ेंक दिया।

स्वर्ग लोग से क्रौंच सीधा ऋषि पराशर के आश्रम में जा गिरा। वहां उसने क्रोध में आकर सारे पात्रों को छिन्न भिन्न कर दिया था और सारा भोजन चट कर गया। यही नहीं उसने ऋषियों के वस्त्र और उनकी धार्मिक पुस्तकें भी कुतर डाली।

मूषक के उधम से परेशान ऋषि पराशर ने किया श्री गणेश का आवाहन मूषक के उत्पात से ऋषि पराशर के आश्रम में चारों तरफ हाहाकार मच गया तब उन्होंने परेशान होकर श्री गणेश का आवाहन किया और उसके आतंक से बचाने का आग्रह किया। तब भगवान गणेश ने अपने पाश को फ़ौरन आदेश दिया कि वह उस मूषक को पकड़ कर लाए।

जब पाश मूषक को पाताल लोक से ढूंढ कर गणेश जी के पास लाया तो भगवान के सम्मुख आते ही मूषक भय से कांपने लगा। उसकी यह दशा देख कर गणेश जी को हंसी आ गयी जिसके पश्चात मूषक भी सामान्य हो गया और गजानन से कहने लगा की आप जो चाहे मुझसे माँग लें। ऐसा सुनते ही भगवान ने उसे अपना वाहन बनने को कहा और वह उसके ऊपर विराजमान हो गए। चूँकि गणेश जी का शरीर काफी भारी था इसलिए वह उनका भार उठाने में सक्षम नहीं था। इसलिए उसने भगवान से प्रार्थना कि की वह उसे इतनी शक्ति प्रदान करें कि वो उनका भार उठा सके तब गणेश जी ने तथास्तु कहा और इस प्रकार मूषक उनका वाहन बन गया।