ललिता षष्ठी का व्रत क्यों किया जाता है? जानिए विधि और महत्व

ललिता षष्ठी का व्रत क्यों किया जाता है? जानिए विधि और महत्व
Lalita Shashthi

ललिता जयंती प्रत्येक साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है। इसके अलावा प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रि के आश्विन शुक्‍ल पंचमी को ललिता पंचमी पर्व मनाया जाता है जिसे उपांग ललिता व्रत भी कहते हैं। इसी तरह प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को ललिता षष्ठी का व्रत रखता जाता है। ललिता षष्ठी के व्रत को संतान षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत से संतान प्राप्ति होती है और संतान की पीड़ाओं का शमन होता है। इस बार 24 अगस्त 20 को मोरयाई छठ, सूर्य/चम्पा षष्ठी और ललिता षष्ठी व्रत पूजन का पर्व है।

संतान सुख हेतु करते हैं ये व्रत

इस व्रत के बारे में भगवान श्री कृष्ण जी ने स्वयं कहा है कि यह व्रत शुभ सौभाग्य एवं योग्य संतान को प्रदान करने वाला होता है। संतान के सुख एवं उसकी लंबी आयु की कामना हेतु इस व्रत का बहुत महत्व है।

किसे करना चाहिए ये व्रत: जिसे संतान नहीं है उसे और पुत्रवती स्त्रियों को यह व्रत करना चाहिए। इसके अलावा अपने पति की रक्षा और आरोग्य जीवन तथा संतान सुख के लिए भी यह व्रत करना चाहिए।

कैसे करते हैं व्रत पूजन: इस दिन षोडषोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते हैं। सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके घर के ईशान कोण में पूर्वा या उत्तराभिमुख बैठकर पूजा करते हैं। इसके लिए पहले से ही भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, माता गौरी और शिव भगवान की मूर्तियों सहित पूजन सामग्री को एक जगह एकत्रित रखते हैं जैसे तांबे का लोटा, नारियल, कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि।

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