होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य क्यों नहीं किए जाते?

होलाष्टक के दौरान  शुभ कार्य क्यों नहीं किए जाते?
Holashtak 2020

होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लगता है। यानी कि फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर के पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। 2020 में होलाष्टक 2 मार्च से शुरू हो रहा है और 9 मार्च यानी कि होलिका दहन तक रहेगा। होलिका दहन के अगले दिन यानी कि 10 मार्च को धुलंडी खेलेंगे। इसे कई जगह धुलि वंदन भी कहते है। धुलंडी के दिन लोग खूब रंग से होली कहलते है। जबकि रंग पंचमी का त्योहार 14 मार्च चैत्र कृष्ण पंचमी का है। उत्तर  भारत में होलाष्टक को अशुभ मानने की प्रथा है और निभाई भी जाती है। लेकिन अगर हम बात करे दक्षिण भारत की तो यहा यह कम देखने को मिलता है।

होलाष्टक को अशुभ मानने की प्रथा क्यों है?

इस  बात से बहुत से लोग वाकिफ है कि होलाष्टक में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। मांगलिक कार्य करना इस समय निषेध माना जाता है। अच्छे काम करना इन दिनों बहुत ही शुभ माना जाता है। आज के लेख में हम आपको होलाष्टक के अशुभ होने के तीन कारण बताएगे। इससे जुडी ही दो पौराणिक कथाएं बहुत ही प्रचलित है। पहली कथा भक्त प्रह्लाद और दूसरी कामदेव की है।

भक्त प्रह्लाद

ऐसी एक पौराणिक कथा है उसके अनुसार माना जाता है कि राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को भगवान श्रीहरि विष्णु की भक्ति से दूर रखने के लिए आठ दिनों तक बहुत ही कठिन से कठिन यातनाए की थी। तो ऐसे में आठवें दिन होलिका जो की वरदान प्राप्त थी और हिरण्यकश्यप की बहिन थी। वो जलती हुई आग में भक्त प्रह्लाद को लेकर बैठी थी और जल गई थी लेकिन भक्त प्रह्लाद बच गए थे।

रति के पति कामदेव से जुड़ी हुई कथा

ऐसा माना जाता है कि देवताओं के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए बहुत से दिनों तक बहुत प्रयास किए थे। इसी के कारण भगवान शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को कामदेव को भस्म कर दिया था। इसके बाद में कामदेव की पत्नी रति ने अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी थी और फिर भोले नाथ ने कामदेव को पुनर्जीवन देने का आश्वासन दिया था।

ज्योतिष धारणा के हिसाब से होलाष्टक क्यों अशुभ है?

ऐसा ज्योतिषों का मानना है कि होलाष्टक का प्रभाव तीर्थ क्षेत्र में नहीं माना जाता है। लेकिन इन आठ दिनों में मौसम परिवर्तन हो रहा होता है ऐसे में कोई भी व्यक्ति रोग की चपेट में आ सकता है। तो यही वजह है जिसके कारण  इन दिनों शुभ कार्य वर्जित है। होलाष्टक के इन आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि  से अच्छा समय माना जाता है।

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